मेरे ख़ुदा देख क्या से क्या हुआ आदमी
मौला बता सोच कर क्या फिर जना आदमी
वो इक ज़माना अलग था इश्क़ करते थे जब
इमरोज़ बस हुस्न, दौलत पर फ़ना आदमी
मुझ को किसी से नहीं मतलब कि तेरे सिवा
फिर क्या बुरा आदमी जाँ क्या भला आदमी
इंसान अच्छे से बन सकता नहीं और फिर
बनने चला आदमी का अब ख़ुदा आदमी
तौबा करो इस मोहब्बत, इश्क़ और प्यार से
कर के मोहब्बत कि जाँ से ही गया आदमी
मैं दंग था रात भर कल, आईना देख कर
था सामने आईने में इक नया आदमी
तुम जितने बे-दिल हो 'जाज़िब' तुम सकोगे नहीं
इक आदमी दिल से बनता है बड़ा आदमी
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