वली के लहू की रवानी ग़ज़ल है
किसी नाज़नीं की जवानी ग़ज़ल है
कई मिसरों के साथ वो रहने वाली
कई मर्दों की इक ज़नानी ग़ज़ल है
मोहब्बत, उक़ूबत, तिज़ारत शिकायत
हक़ीक़त भी है और कहानी ग़ज़ल है
है इक रब्त लफ़्ज़ों का लफ़्ज़ों से और क्या
सलीके से जिस को निभानी ग़ज़ल है
मुहब्बत में मिलते हैं जाने कई जख़्म
उन्हीं जख़्मों की इक निशानी ग़ज़ल है
तिरा जिक़्र महफ़िल में छेड़ा था मैंने
सभी ने कहा क्या सुहानी ग़ज़ल है
तिरे होठ मिसरे बदन बह्र है और
तिरी ये निगाहें मआनी ग़ज़ल है
वो जिस शह्र में रहता है इश्क़ मेरा
वहाँ की हवा और पानी ग़ज़ल है
चुराया है जिस लड़की ने दिल मिरा वो
बड़ी खूबसूरत सयानी ग़ज़ल है
ज़बाँ कह नहीं सकती जो बातें "जाज़िब"
उन्हें ख़ामुशी में बतानी ग़ज़ल है
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