पहले परियों का तो रस्ता देखते हैं

  - Lalit Mohan Joshi

पहले परियों का तो रस्ता देखते हैं
फिर ग़ज़ल के एक दो मतले कहे हैं

रतजगे और अनमने से लग रहे हम
ये मुकम्मल इक ग़ज़ल के वास्ते हैं

काश ये शायद तुम्हें मालूम होता
हम तुम्हीं को रातभर बस सोचते हैं

पास माना सब हो लेकिन यार फिर भी
हम तुम्हें दुनिया में पूरी खोजते हैं

चिलचिलाती धूप ये माथे पसीना
तेरी ख़ुशियों के लिए तन धारते हैं

हम मुहब्बत छोड़ आए उस गली में
देखना अब किस गली हम रास्ते हैं

जो कहा जिसने कहा जितना 'ललित' से
हम मगर तेरी ही ख़ातिर जागते हैं

  - Lalit Mohan Joshi

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