पहले परियों का तो रस्ता देखते हैं
फिर ग़ज़ल के एक दो मतले कहे हैं
रतजगे और अनमने से लग रहे हम
ये मुकम्मल इक ग़ज़ल के वास्ते हैं
काश ये शायद तुम्हें मालूम होता
हम तुम्हीं को रातभर बस सोचते हैं
पास माना सब हो लेकिन यार फिर भी
हम तुम्हें दुनिया में पूरी खोजते हैं
चिलचिलाती धूप ये माथे पसीना
तेरी ख़ुशियों के लिए तन धारते हैं
हम मुहब्बत छोड़ आए उस गली में
देखना अब किस गली हम रास्ते हैं
जो कहा जिसने कहा जितना 'ललित' से
हम मगर तेरी ही ख़ातिर जागते हैं
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