जब उठाकर वो नज़र देखेंगे - Manoj Devdutt

जब उठाकर वो नज़र देखेंगे
फिर नज़र से क़त्ल कर देखेंगे

आशिक़ी तो बेख़बर होती है
हो के हम भी बेख़बर देखेंगे

अब दवाई ही न करती है काम
अब दुआ का हम असर देखेंगे

चाँद इतनी पास से कब देखा
पर कभी तेरी कमर देखेंगे

देख लेंगे हम तुम्हें पूरा पर
हर दफ़ा पर मुख़्तसर देखेंगे

इक गली मंज़िल रहेगी अब से
तेरी खिड़की और दर देखेंगे

घर से निकले हो गया इक अरसा
घूमकर हम दर-ब-दर देखेंगे

ख़ुद ख़ुदा देंगे तुम्हें मनचाहा
कर्म का पहले शजर देखेंगे

देखना है जो मना हम सबको
काम करके वो मगर देखेंगे

है मना ये अब मुझे पर हम तो
अपना तुझमें हम-सफ़र देखेंगे

- Manoj Devdutt
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