जब उठाकर वो नज़र देखेंगे
फिर नज़र से क़त्ल कर देखेंगे
आशिक़ी तो बेख़बर होती है
हो के हम भी बेख़बर देखेंगे
अब दवाई ही न करती है काम
अब दुआ का हम असर देखेंगे
चाँद इतनी पास से कब देखा
पर कभी तेरी कमर देखेंगे
देख लेंगे हम तुम्हें पूरा पर
हर दफ़ा पर मुख़्तसर देखेंगे
इक गली मंज़िल रहेगी अब से
तेरी खिड़की और दर देखेंगे
घर से निकले हो गया इक अरसा
घूमकर हम दर-ब-दर देखेंगे
ख़ुद ख़ुदा देंगे तुम्हें मनचाहा
कर्म का पहले शजर देखेंगे
देखना है जो मना हम सबको
काम करके वो मगर देखेंगे
है मना ये अब मुझे पर हम तो
अपना तुझमें हम-सफ़र देखेंगे
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