मेरे ख़ुदा तू और भी अज़रार दे मुझे
कुछ दिन हसीन ख़्वाब दे फ़िर मार दे मुझे
जो शोर उठ रहा है मिरे नाम का उधर
तो क्यूँ न हो कि बख़्त भी अक़्दार दे मुझे
As you were reading Shayari by Nikhil Tiwari 'Nazeel'
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