अकेला ही चला था मैं अकेले ही सफर में हूँ

  - Prashant Sitapuri

अकेला ही चला था मैं अकेले ही सफर में हूँ
मगर मैं कार - आमद हूँ दुआ में हूँ असर में हूँ

ख़ता हो कोई मुझसे और लोगों को मिले मौक़ा
संभल कर पैर रखता हूँ ज़माने की नज़र में हूँ

ज़हर के हूबहू बातें निकलने का यही कारन
ज़हर ही मुझमें है या तो रगो - पै मैं ज़हर में हूँ

तु आली है तूने ही रंक को राजा बनाया है
ख़ुदा तू मेरी सुन ले मैं हमेशा से सिफ़र में हूँ

कभी सोंचो कि मैं हर बात पर हर बार क्यूँ राजी
मेरी उल्फ़त तुझे खोने से डरता हूँ तो डर में हूँ

जो अच्छे दिल के हैं यारों वही गुमनाम रहते हैं
मैं झूठा हूँ फ़रेबी हूँ मगर जानां ख़बर में हूँ

मेरा तो ख़ूब मन करता कि उसके घर को जाऊँ मैं
मगर वो ये नहीं कहता चले आओ मैं घर में हूँ

  - Prashant Sitapuri

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