हीरे को हीरा ठीक है लोहा सही नहीं

  - Prashant Sitapuri

हीरे को हीरा ठीक है लोहा सही नहीं
यानी हो फूल तुम तुम्हें काँटा सही नहीं

हर आदमी से पूछा गया मेरे बारे में
हर आदमी नें ये कहा बंदा सही नहीं

मैं अपने एक दोस्त को ये कहते थक गया
ऐ दोस्त हिज्र ठीक है धोखा सही नहीं

पक्षी से चाहते हैं कि ज़िंदान में रहे
माशूक़ के लिए तो ये रस्ता सही नहीं

वादा करूँ मैं साथ में रहने का उम्र भर ?
वा'दा-शिकन हूँ यार मैं वादा सही नहीं

फिर एक दिन यूँ ही मैं ये बस सोचने लगा
चालाक आदमी भी ज़ियादा सही नहीं

गुस्से में मुँह से बात निकलती ख़राब है
सो थूक दीजिये कि ये गुस्सा सही नहीं

झगड़े में उससे साल ये पूरा गुज़र गया
यानी मेरा ये साल भी गुज़रा सही नहीं

  - Prashant Sitapuri

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