ग़म-ए-दुनिया से जो तकरार करता हूँ तो करता हूँ
भले फिर राह हो दुश्वार करता हूँ तो करता हूँ
दिल-ए-दीवार पर यूँ तो बहुत तस्वीर हैं तेरी
पर अब तन्हाई का दीदार करता हूँ तो करता हूँ
तमाशा क्यों बना कर रख दिया मेरी मोहब्बत का
अगर मैं कह रहा हूँ प्यार करता हूँ तो करता हूँ
मुझे ये भी पता है फूल नइँ लेगी वो फिर भी मैं
गली महबूब की गुलज़ार करता हूँ तो करता हूँ
किसी के हुस्न का मुझपर कोई जादू नहीं चलता
हसीनाओं का फ़न बेकार करता हूँ तो करता हूँ
मुझे मालूम है इस इश्क़ का अंजाम क्या होगा
मगर अब क्या करूँ सरकार करता हूँ तो करता हूँ
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