जिसे जो मर्ज़ी वो कहने दिया जाए
मुझे मुझमें मगर रहने दिया जाए
मेरी तन्हाइयों में तन्हा तन्हा ही
हमेशा के लिए ढहने दिया जाए
ज़रूरत है नहीं कोई तबीब-ए-ग़म
है दर्द-ए-क़ल्ब तो सहने दिया जाए
न चाहत दिल्लगी की है न दिलबर की
मुझे अश्कों में ही बहने दिया जाए
'सबा' कोशिश न कर वाक़िफ़ तू होने की
मुझे गुमनाम ही रहने दिया जाए
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