इन तीर सी नज़रों को इधर क्यों नहीं करता
तू इश्क़ की इस जंग को सर क्यों नहीं करता
दीवार में दर देख के मैं सोच रहा हूँ
वो फिर किसी दीवार में दर क्यों नहीं करता
गर इश्क़ है तुझको तो जुदाई के अलम में
तू ख़ून से पोशाक को तर क्यों नहीं करता
ऐ हुस्न की बारिश में नहाए हुए बंदे
तू राह-ए-मुहब्बत पे सफ़र क्यों नहीं करता
किरदार पे बोहतान लगाता है सभी के
किरदार पे ख़ुद अपने नज़र क्यों नहीं करता
ख़ुश हो के मिला करता था हर शख़्स से पहले
क्या हो गया अब ऐसा शजर क्यों नहीं करता
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