इस तरह जो देखोगे बार बार आँखों में
तो उतर ही आएगा तुमसे प्यार आँखों में
आँखें बंद करता हूँ दर्द बढ़ने लगता है
फूल ने चुभाए हैं कितने ख़ार आँखों में
अपने दिल पे फ़ुर्क़त के अन गिनत निशाँ लेकर
ख़्वाब रोज़ मरते हैं तीन चार आँखों में
जब से ये सुना मैंने है ये वस्ल का मौसम
आ गई है ख़्वाबों की इक बहार आँखों में
तुम पलट के आओगे सिर्फ़ इस भरोसे पर
रोज़ साँस लेता है इंतिज़ार आँखों में
भूले मय की लज़्ज़त को मयकदे के रस्ते को
झाँक ले अगर कोई बादा ख़्वार आँखों में
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