सौंप दी तर्क-ए-तअल्लुक़ की जो सौग़ात हमें
उम्र भर याद रहेगी ये मुलाक़ात हमें
ख़ुद से मिलते हैं तो ख़ुद को नहीं पहचानते हैं
ऐसे हालात में ले आए हैं हालात हमें
जब से देखा है तिरी आँखों से ख़ूँ गिरते हुए
तब से अच्छी नहीं लगती है ये बरसात हमें
पास आते हैं जबीं होंठों पे रख देते हैं
इस तरह देते हैं वो हुस्न की ख़ैरात हमें
आपका दीद करें चूमे कि लग जाएँ गले
तंग करते हैं मुसलसल ये सवालात हमें
अपने होठों से तिरे नक़्श-ए-क़दम चूमने हैं
अपनी आँखों से लगाने हैं तिरे हाथ हमें
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