ख़ानवादे का सदा अपने भरम रक्खेंगे
जैसे अजदाद ने रक्खा यूँ ही हम रक्खेंगे
तुम मुझे चाहते थे चाहते हो चाहोगे
बात है झूठ मगर हम ये भरम रक्खेंगे
होगा उस रोज़ मयस्सर हमें जन्नत का मज़ा
कूचा-ए-यार में जिस रोज़ क़दम रक्खेंगे
मेरी नम आँखें अगर तुमको ख़ुशी देती हैं
आज से वादा है हम आँखों को नम रक्खेंगे
हाथ कट जाएँगे तामीर मुकम्मल कर के
इसलिए थोड़ा सा तामीर में ख़म रक्खेंगे
बर्छियाँ रक्खो या भाले ये तुम्हारी मर्ज़ी
हम तो बस अपने मकानों में अलम रक्खेंगे
हम शजर अपने फ़रीज़े को निभाएँगे सदा
हर मुसाफ़िर पे सुनो रहम-ओ-करम रक्खेंगे
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