ख़िज़ाँ ने लूट लिया है हसीं बहारों को
सुकून कैसे मय्यसर हो ग़म के मारों को
किसी ने हाथ बढ़ाया नहीं मदद के लिए
सदाएँ देता रहा मैं तमाम यारों को
जो आसमाँ में उड़ो तो ये सोच कर उड़ना
ज़मीं पे गिरना ही पड़ता है शह सवारों को
लो अपने पहलू में रक्खो कि कान में पहनो
मैं ले के आ गया गर्दूं से चाँद तारों को
कभी वो देके कभी लेके आज़माता है
ज़माना समझा न क़ुदरत के इन इशारों को
वो जिसके वास्ते मैं फूल लेने आया था
बिछा रहा था मिरी राह में वो ख़ारों को
ये जो दरारे हैं फ़ुर्क़त की ख़ाना-ए-दिल में
बताओ कैसे भरूँगा मैं इन दरारों को
तुम्हारी लाश 'शजर' मौजे साथ लाई थीं
हमारी लाश ने ढूँढा है ख़ुद किनारों को
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