ग़म मनाओ कि अज़िय्यत की रसन बाँध गया
दिल की गर्दन में वो फ़ुर्क़त की रसन बाँध गया
चीख़ता रह गया मत बाँध ये नफ़रत की रसन
वो मगर नफ़रती नफ़रत की रसन बाँध गया
खोलकर हुस्न के हाथों से बड़े शौक़ से वो
मन की आँखों में मुहब्बत की रसन बाँध गया
क्या शिकायत हो बता उसकी शिकायत की भला
लब के शानों में शिकायत की रसन बाँध गया
किस तरह दिल में क़दम रक्खे मोहब्बत ये शजर
दिल के दरवाज़े पे हैबत की रसन बाँध गया
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