वो नीच काम करने से घबराया ही नहीं
दिल तोड़ के कई कभी पछताया ही नहीं
बख़्शीश तेरे सारे ही रक्खा सँभाल कर
चाहे वो ग़म ही क्यूँ न हो ठुकराया ही नहीं
मिलने के वास्ते मैं कड़ी धूप में जला
आऊँगा कह के यार मेरा आया ही नहीं
उम्मीद से बड़ी मैं उसे देखता रहा
लेकिन वो शख़्स मुझ पे तरस खाया ही नहीं
झलके मिरी निगाह में तस्वीर बस तिरी
मैं भा के इसलिए किसी को भाया ही नहीं
दिल ढूँढता रहा उसे ता-उम्र दर-ब-दर
जो आते आते हाथ मेरे आया ही नहीं
ये ग़म क़दम क़दम पे मिरे साथ चल रहा
कैसे कहूँ मेरा कोई हम-साया ही नहीं
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