जिसे समझ रहा था मैं कि वो मेरा हबीब था
यक़ीन के नक़ाब में वो अस्ल में रक़ीब था
मुझे कभी मिली नहीं ख़ुशी किसी के साथ की
करूॅं भला गिला मैं क्यूँ अगर यही नसीब था
जो मुफ़लिसी में मर गया इलाज़ के बग़ैर ही
मेरे क़दीम मर्ज़ का वही तो इक तबीब था
कभी समझ नहीं सका मैं इश्क़ की वो साजिशें
'अजीब थी वफ़ा तेरी वो साथ भी 'अजीब था
बना लिया हूंँ ख़ुद को अब गलीज़ तेरी चाह में
नहीं तो शाही ख़ून का मैं भी कभी नज़ीब था
ज़माने की नज़र में था जो कुफ़्र से भरा हुआ
मेरे दिल-ए-मज़ार पे वो इश्क़ का ख़तीब था
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