है मिरी आवारगी फ़ाक़ा-कशी सबसे अलग
जी रहा हूँ इसलिए मैं ज़िन्दगी सबसे अलग
दर -ब-दर दिल ढूँढता रहता है जाने क्या पता
घर में सब कुछ है मगर उसकी कमी सबसे अलग
फूल , पौधे, ज़र्द पत्ती कुछ सुनहरी तितलियाँ
मोड़ सँकरा है मगर तेरी गली सबसे अलग
हुस्न से वाक़िफ़ नहीं होना मुझे अच्छी तरह
चाहता हूँ आपकी हो सादगी सबसे अलग
एक दिन आँखों में आँखें डालकर देखा उसे
दश्त में जैसे लगी प्यासी नदी सबसे अलग
वहशतों का सिलसिला हरगिज़ नहीं आगे बढ़े
आये मुझसे कर ले कोई दोस्ती सबसे अलग
इश्क़ है इक मसअला जो हल नहीं होता कभी
जीते जी करनी है पड़ती ख़ुदकुशी सबसे अलग
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