बड़ा वीरान है मौसम कभी मिलने चले आओ - Tarun Bharadwaj

बड़ा वीरान है मौसम कभी मिलने चले आओ
हर इक जानिब हैं घेरे ग़म कभी मिलने चले आओ

यहाँ चारों तरफ़ लोगों की वैसे ख़ूब रौनक़ है
मगर जैसे हो कोई कम कभी मिलने चले आओ

तुम्हें गर इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों का
तुम्हारा वस्ल है मरहम कभी मिलने चले आओ

अँधेरी रात गहराई इधर रोता ये तन्हा दिल
दिए की लौ करूँ मद्धम कभी मिलने चले आओ

हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू रुलाती है
नहीं आएगा ये मौसम कभी मिलने चले आओ

लगी है चोट दिलपर क्या कहूँ मैं कैसे बतलाऊँ
लगाने को ज़रा मरहम कभी मिलने चले आओ

नहीं मैं जी सकूँगा बिन तुम्हारे जान इक पल भी
तुम्हें कहता फिरूँ हर दम कभी मिलने चले आओ

ज़माने की निगाहों ने हमें कितना डराया है
नहीं होंगे जुदा तुम हम कभी मिलने चले आओ

- Tarun Bharadwaj
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