करतूत-ए-ना-गवार तुफै़ल आसमान से
फैंका हूँ इस जहान में मैं इक जहान से
उसने कहा था तीसरा कोई न आएगा
पस इसलिए निकाला मुझे दास्तान से
ये राह-ए-इश्क़ है कि यहाँ बेख़ुदी में चल
गिर जाएगा भटक के चलेगा जो ध्यान से
आसेब बन के बैठी है दिल में तुम्हारी याद
क्या वास्ता है इसका न जाने मकान से
ऐ शहर-ए-ना-सिपास मुझे गै़र मत समझ
तू ने पनाह ली है मिरे आस्तान से
उसके फ़िराक़ ने मुझे शाइर बना दिया
इक फै़ज़ मिल रहा है मुझे इस ज़ियान से
अटका है मिसरा ज़ेहन में बस इक ख़्याल पर
इक लफ़्ज़ आ नहीं रहा शहर-ए-गुमान से
हम ऐसे बदनसीब कि हमको अता नहीं
मिल जाए बद-दुआ कभी उस ख़ुश-ज़बान से
उसने अदील-ए-शहर को बहकाया हुस्न से
बा-उज़्र हो के हार गए उस हिसान से
अब फ़िक्र है विसाल की अहमद न ख़ौफ़-ए-हिज्र
मयखाने में हैं पी रहे हैं इत्मिनान से
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