एक मुद्दत तक तो इश्क़ाना चला

  - A R Sahil "Aleeg"

एक मुद्दत तक तो इश्क़ाना चला
शम्अ से फिर दूर परवाना चला

ख़ुद ब ख़ुद होने लगीं गुल पोशियाँ
जिस तरफ़ भी तेरा दीवाना चला

शाम ढलते याद आया बे-वफ़ा
और शब भर दौर-ए-पैमाना चला

दुश्मनों के नाम भी खुलते गए
जब ग़ज़ाला का भी अफ़्साना चला

रात भर ज़हनों में सुलगी नफ़रतें
रात भर काबा-ओ-बुतख़ाना चला

कर दिया चित इश्क़ ने साहिल हमें
इक पियादा भी न इक ख़ाना चला

  - A R Sahil "Aleeg"

More by A R Sahil "Aleeg"

As you were reading Shayari by A R Sahil "Aleeg"

Similar Writers

our suggestion based on A R Sahil "Aleeg"

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari