तेरी आँखों से मैं आँखें मिला कर देख लेता हूँ
किसी दिन आ तुझे भी आज़मा कर देख लेता हूँ
क़फ़स से इश्क़ है जिनको अलग वो रह नहीं सकते
मगर फिर भी परिंदों को उड़ा कर देख लेता हूँ
कहाँ कितना हुआ बर्बाद मैं इश्क़-ओ-मोहब्बत में
मैं माज़ी के झरोखों से ये जा कर देख लेता हूँ
न दुश्मन मोतबर निकले न आया रास कोई दोस्त
तुम आए हो तुम्हें भी आज़माकर देख लेता हूँ
बहुत दिन हो गए सहते हुए ज़ुल्म-ओ-सितम तेरे
ख़िलाफ़-ए-वज़ मैं भी पत्थर उठा कर देख लेता हूँ
बिखर जाने से ख़ुद के मैं कोई मातम नहीं करता
ज़मीं पर टूटे पत्तों को उठा कर देख लेता हूँ
है इस में राज़ क्या इस बार शायद तुम पे खुल जाए
तुम्हें ये शेर मैं फिर से सुना कर देख लेता हूँ
निकलती ही नहीं है बेवफ़ाई की कसक दिल से
चलो फिर भी मैं सिगरेटें जला कर देख लेता हूँ
मुझे मालूम है 'साहिल' पलट कर वो न आएगा
उसे आवाज़ मैं फिर भी लगा कर देख लेता हूँ
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