वजह-ए-बर्बादी था मेरा इश्क़ और शामिल ग़ज़ल - A R Sahil "Alig"

वजह-ए-बर्बादी था मेरा इश्क़ और शामिल ग़ज़ल
कर रहा है इश्क़ फिर भी कह रहा है दिल ग़ज़ल

'अर्ज़ कर तू ऐसा जिस से खिल उठे सारा समाँ
तुझ से सुनने के लिए बेताब है महफ़िल ग़ज़ल

बाद इसके शौक़ से तू क़त्ल कर देना मेरा
पहले मुझ से सुन तो ले तू ऐ मेरे क़ातिल ग़ज़ल

टूटे फूटे चार छह अशआर हैं मेरी असास
मैं कहाँ कहता हूँ कोई आपके क़ाबिल ग़ज़ल

अब तो देनी ही पड़ेगी आपके इस फ़न की दाद
हर तरफ़ फिरती है करती आपकी झिलमिल ग़ज़ल

इस के पीछे चलते हैं हालात के गर्द-ओ-ग़ुबार
हर सुख़न-वर के लिए होती है इक महमिल ग़ज़ल

बे-शऊरों की गली में जब से आई है जनाब
हर तरफ़ से जल रही है देखिए तिल तिल ग़ज़ल

बस इसी जा बैठ कर करना है अब अर्ज़-ए-सुख़न
और अपनी तो यही है आख़िरी मंज़िल ग़ज़ल

जिस पर आकर चैन पाता है मेरा हर इक ख़याल
दर्द की बहती नदी का है यही साहिल ग़ज़ल

- A R Sahil "Alig"
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