फूल जन्नत का है ये और है रहमत बेटी
जो नवाज़ी है ख़ुदा ने है वो नेमत बेटी
मैं ने अल्लाह से बेटा नहीं माँगा लेकिन
सिर्फ़ ख़्वाहिश ये रही हो मेरी दौलत बेटी
पाँव रखने दो ज़मीं पर न करो कोख में क़त्ल
तुमको तोहफ़े में अता करती है क़ुदरत बेटी
जिस से कोयल भी लजाए हो मोअत्तर आँगन
अपनी आवाज़ में रखती है वो लज़्ज़त बेटी
कोई शिकवा न शिकायत न कोई फ़रमाइश
बस समझ जाती है माँ बाप की हालत बेटी
अपने माँ-बाप का सर झुकने नहीं देती है
बढ़ के बेटों से कहीं रखती है इज़्ज़त बेटी
लाख मुश्किल में रहे फिर भी पलट कर माँ से
अपने ससुराल की करती न शिक़ायत बेटी
हर क़दम बार-ए-सितम रंज-ओ-अलम और वहशत
ढूँढती रहती है ये फिर भी मोहब्बत बेटी
मुझको साहिल यूँ लगा घर की गिरी हो दीवार
घर से जब होने लगी डोली में रुख़्सत बेटी
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