अगर हो जीने में मुश्किल ग़ज़ल कही जाए
है दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल ग़ज़ल कही जाए
जमाल-ए-'इश्क़ अगर रू-ब-रू जो आए तो
क़लम उठा के मुमासिल ग़ज़ल कही जाए
फ़क़ीर लोग हैं हम पास कोई काम नहीं
न रहगुज़र है न मंज़िल ग़ज़ल कही जाए
ज़मीं पे चाँद उतरना तो ग़ैर-मुमकिन है
उतर जो आए मुक़ाबिल ग़ज़ल कही जाए
मिले शरफ़ जो ये तो फिर बड़ी तमन्ना है
दर-ए-हुज़ूर हो दाख़िल ग़ज़ल कही जाए
बता भी क़ैस ये सहरा-नवर्दियाँ कब तक
जुनूँ का छोड़ मशाग़िल ग़ज़ल कही जाए
कली कली के बदन पर शबाब है 'साहिल'
चहक रहे हैं अनादिल ग़ज़ल कही जाए
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