चारा-गर भी हाल-ए-दिल पर मेरे हैराँ हो गए
ज़ख़्म दिल के ख़ुद-ब-ख़ुद जब दिल का दरमाँ हो गए
ज़िंदगी के मरहले सब सच में आसाँ हो गए
उनसे नज़रें क्या मिली हम गुल-बदामाँ हो गए
सहन ए गुलशन से हुई कुछ इस तरह रुख़सत बहार,
शाख़-ए-गुल, बर्ग-ओ-समर, लम्हे में वीराँ हो गए
भाई-चारे का मिला उनसे मुझे ऐसा सिला,
तर-ब-तर ख़ूँ से मिरे दस्त-ओ-गिरेबाँ हो गए
रफ़्ता-रफ़्ता मिट गई आवारगी की जुस्तजू,
जब शनाशा-ए-दरो-दीवार-ए- ज़िन्दाँ हो गए
जिस किसी ने देखा, उसने खोलकर दिल, दाद दी
वार ग़म के दिल पे यूँ कार-ए-नुमायाँ हो गए
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