सेहत रहे दुरुस्त न कुछ ढील-ढाल हो
सब चाहते हैं फिर से जवानी बहाल हो
लब पर रहे मिठास भले कुछ भी हाल हो
हाथों में दोनों आम हों जब भी विसाल हो
फिर यूँ हुआ कि पड़ गए नागिन के पल्ले हम
दिल की ये आरज़ू थी कि नागिन सी चाल हो
हर इक डिपार्टमेंट की हालत है एक सी
सब चाहते हैं कोई तो मुर्गा हलाल हो
दो पैग इस ग़रीब को देकर दुआएँ ले
कुछ तो कमा सवाब, ज़रा सा निहाल हो
उस शख़्स का ये ऐब भी मिसरे में ढल गया
खाने को क़ोरमा हो खिलाने को दाल हो
'साहिल' वो ग़ैर की है मगर इश्क़ की है ज़िद
झूठी कढ़ी में पड़ने लगा ज्यों उबाल हो
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