छुप छुप के कनखियों से इशारा न कीजिए
चाहत की लौ को आप शरारा न कीजिए
आईना उन से कहने लगा टूटने के बाद
इस दर्ज़ा अपनी ज़ुल्फ़ें सँवारा न कीजिए
नादान पर ही सिर्फ़ न मौक़ूफ़ रख इसे
एहसान हर किसी का गवारा न कीजिए
बेहतर यही है तर्क-ए-त'अल्लुक़ के बाद अब
तन्हाइयों में उसको पुकारा न कीजिए
आए हैं बज़्म में तो शरीक-ए-सुख़न रहें
तरही नशिस्त से यूँ किनारा न कीजिए
पहले पहल जो हो गए नाकाम इश्क़ में
ये मशवरा है इश्क़ दुबारा न कीजिए
'साहिल' ग़ज़ल के फूल हैं ख़ुश-रंग दिल-फ़रेब
इन के वक़ार को तो गिराया न कीजिए
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