नसीब पर हँसे कि रोए चल पड़े
हम इसलिए भी साथ तेरे चल पड़े
किसे दिखाते क्या लिखा है हाथ पर
सो हाथ हाथ में छुपा के चल पड़े
मलाल हो न ख़ामुशी का सीने में
बस इसलिए ही महफ़िलों से चल पड़े
शब-ए-फ़िराक़ हमसे आशना रही
तुम्हारा क्या है दिल को तोड़े चल पड़े
किसी की ज़िंदगी बदल के आ गए
किसी के रास्तों से हट के चल पड़े
कहा जो उसने कोई राब्ता नहीं
ख़ुतूत उसके मुँह पे मारे चल पड़े
न जाने किन हक़ीक़तों से दूर हैं
न जाने हम कहाँ से फेंके चल पड़े
जो उसके सारे झूठ सच बदल गए
सो हम भी हल्का मुस्कुरा के चल पड़े
अवेस तू सफ़र में कैसे आ गया
हमारा क्या है चलते चलते चल पड़े
सिफ़ारिशें भी दोस्तों की लग गईं
कि सय्यद आज खोटे सिक्के चल पड़े
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