घर से भी कुछ ग़मों की तवानाई ले के जा
परदेस जा रहा है तो तन्हाई ले के जा
रातों की तीरगी न डसेगी निगाह को
हुस्न-ए-शब-ए-विसाल की अँगड़ाई ले के जा
जिस अंजुमन में जुर्म है इज़हार-ए-मुद्द'आ
उस अंजुमन में जुर्रत-ए-गोयाई ले के जा
ना-आश्ना है तुझसे तिरा शहर-ए-आरज़ू
फ़ितरत में अपनी अंजुमन आराई ले के जा
पर्दों की अंजुमन में नक़ाबों की बज़्म में
जाना ही चाहता है तो बीनाई ले के जा
आँखों में सब्ज़ा-ज़ार का मंज़र समेट ले
साँसों में अपने गाँव की पुरवाई ले के जा
अब है यही 'बशर' मिरा सरमाया-ए-हयात
रुसवाई काम आएगी रुसवाई ले के जा
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