मेरी राहों में कोई फूल बिछाया न करो
धूप का आदी हूँ मैं मुझ पे यूँ साया न करो
दिल चुराया न करो ख़्वाब दिखाया न करो
यार अब तुम मेरी यादों में भी आया न करो
यूँ हवाओं में मेरी बात उड़ाया न करो
फूँक कर ऐसे चराग़ों को बुझाया न करो
ये मुलाक़ात की घड़ियाँ हैं बहुत कम यूँ भी
ख़्वाह मख़ाह रूठ के यूँ वक़्त गँवाया न करो
घूमती रहती है गुस्ताख़ ज़माने की नज़र
खिड़कियाँ खोल के यूँ सामने आया न करो
मुझको कलियों के मसलने का गुमाँ होता है
हर घड़ी दाँत से होंठों को दबाया न करो
हसरतें मोम के मानिंद पिघल जाएँगी
बेरुख़ी की ये कड़ी धूप दिखाया न करो
आस्तीनों में कहीं साँप पले होते हैं
हर बढ़े हाथ से तुम हाथ मिलाया न करो
लोग ख़ुद अपनी ही बद-शक़्ल से डर जाएँगे
आईना सबको सर-ए-आम दिखाया न करो
दोस्त बनने का नहीं होता सलीक़ा सब में
यूँ दिल-ओ-जान 'बशर' सब पे लुटाया न करो
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