मुस्कुराहट ओढ़कर यूँ ही नहीं रहता हूँ मैं
झाँककर देखो कभी अंदर बहुत टूटा हूँ मैं
ज़िन्दगी भर का तो वादा ज़िन्दगी से कर लिया
हाँ मगर ऐ मौत ! उसके बाद बस तेरा हूँ मैं
काश ! झूठा ही सही, वो पूछता कैसे हो तुम
मैं भुला देता हर इक ग़म, बोलता, अच्छा हूँ मैं
As you were reading Shayari by Bhaskar Shukla
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