कभी आवाज़ दोगे हम न होंगे
तुम्हारी ज़ीस्त में अब ग़म न होंगे
हमारी याद में रोना ज़रूरी
वगरना ज़ख़्म ये दिल कम न होंगे
हमारा बुत बनाकर सजदे में सब
पता उनको कि हम पैहम न होंगे
अगर तुम जान लो मौज-ए-बला को
तो फिर ये आश्ना बरहम न होंगे
टपकता है लहू बनके 'सफ़ीर' अब
ये आँसू अब मगर मरहम न होंगे
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