मेरी तो क़ौम ज़ाया हो गई बन्दा-नवाज़ी में - SAFEER RAY

मेरी तो क़ौम ज़ाया हो गई बन्दा-नवाज़ी में
मुझे काफ़िर बुलाते हैं जो ख़ुद हैं बुत-परस्ती में

लहू को चाहिए क्या इक दरक जिसमें से बह निकले
दराज़ें ढाँप देता हूँ मैं वो नज़्म-ओ-फ़राज़ी में

चटकती धूप में आया है वो शीतल बयारों सा
सँजो कर रख लूँ उसको क्या मैं अपने दिल-किनारी में

बड़ा ख़ुद को समझते थे जहाज़ी डूबे दरिया में
कहीं तो रह गई होगी कमी यूँ आब-बाज़ी में

हज़ारों हैं जहाँ में पर मुझे ही क्यूँ दिया धोखा
वो हँस के बोलता था है मज़ा कितना रक़ीबी में

- SAFEER RAY
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