उल्फ़त के दौर-ओ-शौक़-ए-मोहब्बत को क्या हुआ
अब दिल में पहले जैसी क़रारत को क्या हुआ
जो ख़्वाब-ओ-ख़्वाहिशात थे वो सब छले गए
अब हसरत-ए-वफ़ा ये अज़ीयत को क्या हुआ
वो शौक़ जो कभी था हमें हुस्न-ए-आरज़ू
आख़िर में उसके पास वो हिम्मत को क्या हुआ
तन्हाई में जो दर्द था वो ख़ुश-नवा कहाँ
ऐ रहनुमा-ए-दिल तिरी रहमत को क्या हुआ
हर सोच में थे रंग मुलाक़ात नक़्श के
अब उन में पहले जैसी लताफ़त को क्या हुआ
दुनिया ने देख ली जो तेरी बेरुख़ी का रंग
अब शोख़ी-ए-मिज़ाज क़यामत को क्या हुआ
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