इक़-तरफ़ा ये रिश्ते आख़िर कब तक
हर ग़म मेरे हिस्से आख़िर कब तक
चीख सुनाई देगी तुमको इक दिन
और बनोगे बहरे आख़िर कब तक
अब जाना है सो तुम जा सकते हो
लाएँगे हम पहरे आख़िर कब तक
अपने हाल पे ख़ुद ही हँसना आया
उसकी याद में रोते आख़िर कब तक
दिल की बातें दीवारों से कह दी
ख़ुद में घुटते रहते आख़िर कब तक
लड़की मुझसे इश्क़ जता अब तू भी
घुटने के बल लड़के आख़िर कब तक
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