हल्की हल्की बूँदा बाँदी और गहरी तन्हाई है
तूफ़ाँ के आसार हैं लगते याद की बदली छाई है
गर जो तुम्हारा छोड़ के जाना उनके लिए नुकसान नहीं
तब तो तुम्हारा ठहरे रहना ख़ुद के लिए दुखदाई है
ठीक तुम्हारा ऊब गया जी, छोड़ के तुम जा सकते हो
पर जो मेरा नुकसान हुआ है उसकी क्या भरपाई है
ज़हर-ए-अना पीकर मैंने भी मुँह उल्फ़त से मोड़ लिया
अब जो भी मिल जाए बस वो ही अपनी सच्चाई है
तक़दीर नहीं होती कोई शय बात तजुर्बे की है
इसके भरोसे बैठे रहकर 'कीर्ति' भी पछताई है
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