लोग हमसे किनारा करते हैं
फिर मज़े से गुज़ारा करते हैं
हम जो क़िस्मत के मारे हैं, क़िस्मत
दूसरों की सँवारा करते हैं
हैं गिराते हमें मुकम्मल लोग
बेसहारे सहारा करते हैं
बोलते थोड़ी हैं बड़े लोग कभी
आँख से बस इशारा करते हैं
दर्द में बे-ज़बान, आँखों से
जाने किसको पुकारा करते हैं
सबसे ज़्यादा ग़रीब लोग अक्सर
पैसों की मार मारा करते हैं
लोग कहते हैं आग पानी जब
ज़िक्र तब हम तुम्हारा करते हैं
प्यार का पूछते हैं सब हमसे
हम सिरे से नकारा करते हैं
जो ख़ता तोड़ दे रिवायत को
वो ख़ता हम तिबारा करते हैं
लोग अब ज़िंदगी नहीं कहते
ज़िक्र केवल हमारा करते हैं
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