ख़ुश-फ़हम सा ख़ुशियाँ लुटाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
बिछड़े हुए को फिर मिलाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
बेरंग सी होली कहाँ पर खेलता है फिर कोई
रंगे हुए कपड़े दिखाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
हर पल यहाँ इन उलझनों से सीखना है अब मुझे
इस नासमझ दिल को बताए जा रहा हूँ मैं यहांँ
सम्मान योद्धा का किया करते सभी अहल-ए-वतन
उनके लिए ताली बजाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
नफ़रत भरा माहौल अब भी वाकई मौजूद है
कुछ फ़ासले उसके मिटाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
अश'आर दिल से लिख रहा हूँ इस ग़ज़ल के मैं अभी
लिखके ग़ज़ल मिसरे सजाए जा रहा हूँ मैं यहांँ
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