कोई गुल शजर से गिरा हवा से बिखर गया सो बिखर गया
कभी हार भी न बना रफ़ा से बिखर गया सो बिखर गया
मुझे फ़ालतू कोई बात ही न बता बता के ज़लील कर
तेरे जो हसीन ही इंतिहा से बिखर गया सो बिखर गया
तेरे हुस्न के ही जुनून से कभी ज़र्ब ऐसे मुझे लगा
उसी ख़्वाह से यूँ ही फिर वफ़ा से बिखर गया सो बिखर गया
किसी रोज़ ऐसे बिछड़ गया न मिला कभी न दिखा कभी
इसी दौड़-धूप में इंतिहा से बिखर गया सो बिखर गया
तिरे इस शबाब से ही कोई भी मिला ले इक ही नज़र अगर
तुझे देख के तेरे ही अदा से बिखर गया सो बिखर गया
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