राह वो जाने न पहचाने सफ़र के तो हैं
वो जहाँ से है उसी ही हम नगर के तो हैं
घूमते है दर-ब-दर यूँ ही कहीं तो हम भी
जानते कुछ है नहीं फिर भी किधर के तो हैं
हैं ठिकाना भी हमारा इस जहाँ में यारों
हाँ इधर के या उधर के कोई घर के तो हैं
महज़ बच्चे हैं नहीं जो खेलते ही रहते
राह में बढ़ते चले हैं उस डगर के तो हैं
फ़र्क़ रंगों में कहाँ सब के रहा है गहरा
फूल सारे एक जैसे उस शजर के तो हैं
दश्त में भी पेड़ सारे ही हरे थोड़े हैं
एक जैसे हैं नहीं हम इक सफ़र के तो हैं
रोज़ हम भी देखते हैं अब बदलते इंसाँ
कुछ जिगर वाले उसी में से ख़बर के तो हैं
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