हम हम-नफ़स कैसे कहाँ अब फ़र्क़ पड़ता है
जब टूटता दिल है यहाँ तब फ़र्क़ पड़ता है
उनको कहाँ सब जानते पहचानते भी हैं
फिर हैसियत से ही कहाँ कब फ़र्क़ पड़ता है
मंज़िल कहाँ वो दूर थी तब हमनशीं अपनी
टूटे हुए दिल से कहाँ अब फ़र्क़ पड़ता है
हथियार ही डाले कहाँ लड़ते हुए हमने
कोई उदू लड़ता वहाँ तब फ़र्क़ पड़ता है
औक़ात कुछ भी हो मगर उम्दा इरादे हैं
उससे सफ़र में फिर वहाँ सब फ़र्क़ पड़ता है
ढलता अगर है हुस्न तो वह ढल ही जाएगा
रिश्तों मे फिर उससे कहाँ कब फ़र्क़ पड़ता है
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