किसी ने साज़िशन कम-ज़र्फ़ साबित कर दिया मुझको
यक़ीनन उसकी हरक़त ने जुनूँ से भर दिया मुझको
अब अपने आप से मैं ठानता हूँ जब्र-ओ-क़द्र-ए-रब
उठूँगा फिर चलूँगा ग़म ने ज़िंदा कर दिया मुझको
भले मानुस तुम्हारी जो तमन्ना थी हुई भरपूर
तुम्हारी बंदिशों ने लो खुला अंबर दिया मुझको
तसव्वुर में कई महले दुमहले थे मेरे अपने
मगर क़िस्मत-जली ने सिर्फ़ इक छप्पर दिया मुझको
तुम्हीं पर मुनहसिर रहना तो ख़तरा मोल लेना था
ख़ुदारा तुमने जल्द आगाह तो यूँ कर दिया मुझको
As you were reading Shayari by Nityanand Vajpayee
our suggestion based on Nityanand Vajpayee
As you were reading undefined Shayari