मैं अकेला ही ज़माने के लिए काफ़ी हूँ
दुखती रग इसकी दबाने के लिए काफ़ी हूँ
तुम समझते हो कि नादान सा आशिक़ हूँ मैं
इश्क़ में ख़ुद को मिटाने के लिए काफ़ी हूँ
वैसे औक़ात मेरी छोटी है बेशक लेकिन
तेरा हर नाज़ उठाने के लिए काफ़ी हूँ
ज़ुल्म गर कोई शहंशाह भी तुझ पर ढाए
तख़्त उसका मैं गिराने के लिए काफ़ी हूँ
चल ये माना कि तू दरिया है ग़मों का तो फिर
मैं समंदर हूँ समाने के लिए काफ़ी हूँ
मुल्क़ को जो भी मिटाने की हैं साज़िश में उन्हें
उनकी औक़ात पे लाने के लिए काफ़ी हूँ
'नित्य' मैं शम्स नहीं हूँ कि ज़माने भर को
रौशनी तुझ को दिखाने के लिए काफ़ी हूँ
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