हमारी बात को तुम तक कोई पहुँचा गया था क्या
दिखाकर आईना सच का तुम्हें दहला गया था क्या
बशर जो छोड़ आया है रिवाज़ों की क़वायद को
मेरे जैसा ही ये भी रस्मों से उकता गया था क्या
तुम्हारा दिल मुझे लगता कि चकनाचूर है इकदम
किसी पत्थर से ये शीशा कहीं टकरा गया था क्या
निभाया आसमाँ ने इश्क़ धरती से तो सब बोले
ये अंबर भी ज़मीं के प्यार में बौरा गया था क्या
सज़ा-ए-मौत जब उसको मिली सबने कहा कुछ यूँ
ये मुजरिम क़त्ल करते वक़्त ही पकड़ा गया था क्या
लो उसने झूठ की बुनियाद पर ही बाँध ली बिल्डिंग
वो सच्चाई के हुजरे से बहुत घबरा गया था क्या
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