आपने तो इस क़दर रंजूर कर डाला मुझे
प्यार की चोटों से चकनाचूर कर डाला मुझे
था तो मैं पत्थर मगर जब से मुहब्बत हो गई
इस मुई ने एक-दम अंगूर कर डाला मुझे
एक टुकड़ा था मैं तपते थार रेगिस्तान का
इश्क़ की ठंडक ने अब अखनूर कर डाला मुझे
काव्य का तो का तलक मुझको नहीं आता है पर
आपकी चाहत ने तुलसी सूर कर डाला मुझे
मैं मरीज़-ए-इश्क़ हूँ बेज़ार रातें बेचता हूँ
आपकी उल्फ़त ने चकनाचूर कर डाला मुझे
नित्य मेरी ही वज़ह से तुमको दुनिया मिल गई
शोहरतें मिलते ही तुमने दूर कर डाला मुझे
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