फटे हालात हैं ख़ुद पर हिमाकत कर रहा है वो
उगा आतंक की फसलें यूॅं जुर्रत कर रहा है वो
नहीं खाने को आटा है नहीं पीने को है पानी
मगर कश्मीर पर फिर भी शरारत कर रहा है वो
कुछ इक टुकड़ा दबाए है मेरे कश्मीर का अब भी
किए आवाम को क़ैदी जलालत कर रहा है वो
वहाॅं के लोग कुछ यूॅं हैं कि हों पिंजरे में ज्यों पंछी
कहे जाता मगर उनकी हिफ़ाज़त कर रहा है वो
गजब बोया है उसने ज़हर यूॅं कश्मीर के मन में
गज़ब फिरका-परस्ती की तिज़ारत कर रहा है वो
हमारे ही वतन के नित्य लोगों को सिखा आतंक
उढ़ा जहल-ए-मसऊद उनको जहालत कर रहा है वो
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