मैंने जब जब भी तेरे हक़ में इबादत की है
दिल ने ऐ दोस्त बहुत ज़ोर बग़ावत की है
तुझको ऐ जान मेरे साथ में दिक़्क़त क्या है
तूने मेरे सिवा हर इक से मुहब्बत की है
मौज़ कलियों को कभी रास न आई लेकिन
तूने भँवरों की तरह मुझसे शरारत की है
अपने इस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को सलाखों में रख
तेरे हर इक अदा ने मुझपे क़यामत की है
मैं तो दुश्मन के भी बच्चों से लगा करता हूँ
तूने तो ख़ैर मेरे साथ मुहब्बत की है
ये अलग बात कि हम मिल नहीं पाए लेकिन
उसने बच्चों की तरह मेरी हिफ़ाज़त की है
तुझसे मैं कम कहाँ हूँ देख अमीर-ए-दुनिया
मैंने मुल्कों की तरह दिल पे हुक़ूमत की है
उसने सौ सौ दफ़ा सौ नाम पुकारे मेरे
मैंने इक बार कहा था कि मुहब्बत की है
तुम मुहब्बत को इनायत ही समझना 'राकेश'
हमको अंदाज़ा किसी दूर क़यामत की है
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