मुकम्मल दास्ताँ होना तो कुछ लुत्फ़-ए-सफ़र लेना
मचल के उठ खड़े होना तड़प के आह भर लेना
मुहब्बत में बहुत पाकीज़गी अच्छी नहीं होती
ज़ियादा तो नहीं मिलना तो इक बोसा मगर लेना
बुलंदी का सफ़र सुनते तो हैं मसरूफ़ियत का है
अगर फिर भी समय निकले तो कुछ खोज़-ओ-ख़बर लेना
समय का चक्र चलता है तो सब चीज़ें बदलती हैं
किसी से प्यार जब करना तो वादे मुख़्तसर लेना
मुकद्दर के भरोषे आदमी अब जी नहीं सकता
अगर चुनने का मौका हो तो फिर दस्त-ए-हुनर लेना
शिखर नापा नहीं मैंने कभी अपनी बुलंदी का
मेरी ताक़त का अंदाज़ा मेरे दुश्मन से कर लेना
तुम्हें दो आँखें अब भी चाहती हैं गाँव में 'राकेश'
पलट के गाँव जब जाना तो उनसे बात कर लेना
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