हमारा दिल तुम्हारे ग़म से बाहर क्यों नहीं आता
किसी दिन आ भी जाता है तो खुलकर क्यों नहीं आता
इसी दिल को सजाने में ख़पा दी उम्र ये मैंने
ये दिल सज्दे के क़ाबिल है तू झुककर क्यों नहीं आता
मैं क़तरा हूँ मगर दरिया का फ़न मालूम है मुझको
कि मेरे दर पे फिर कोई समंदर क्यों नहीं आता
तेरी शोहरत ने तुझको चाहने वाला दिया लेकिन
बता ऐ बेवफ़ा लड़की वो लोफ़र क्यों नहीं आता
ख़िज़ाँ के मौसमों ने कल मुझे समझा के ये बोला
अगर घर पास है उसके तो मिलकर क्यों नहीं आता
यूँ हँस कर के कलेजा माँगना अच्छा नहीं लेकिन
मेरे अंदर सितमगर है तो खुलकर क्यों नहीं आता
न उसके पास दौलत है न उसके पास शोहरत है
मगर दर पे सिकंदर के कलंदर क्यों नहीं आता
इसी दिल ने मेरी आँखों पे आफ़त डाल दी 'राकेश'
इसी दिल को चुराने कोई रहबर क्यों नहीं आता
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