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Jannat Shayari

Here is a curated collection of Jannat shayari in Hindi. You can download HD images of all the Jannat shayari on this page. These Jannat Shayari images can also be used as Instagram posts and whatsapp statuses. Start reading now and enjoy.

अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे

जो तेरे आरिज़ ओ गेसू के दरमियाँ गुज़रे
कभी कभी वही लम्हे बला-ए-जाँ गुज़रे

मुझे ये वहम रहा मुद्दतों कि जुरअत-ए-शौक़
कहीं न ख़ातिर-ए-मासूम पर गिराँ गुज़रे

हर इक मक़ाम-ए-मोहब्बत बहुत ही दिलकश था
मगर हम अहल-ए-मोहब्बत कशाँ कशाँ गुज़रे

जुनूँ के सख़्त मराहिल भी तेरी याद के साथ
हसीं हसीं नज़र आए जवाँ जवाँ गुज़रे

मिरी नज़र से तिरी जुस्तुजू के सदक़े में
ये इक जहाँ ही नहीं सैंकड़ों जहाँ गुज़रे

हुजूम-ए-जल्वा में परवाज़-ए-शौक़ क्या कहना
कि जैसे रूह सितारों के दरमियाँ गुज़रे

ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर
तिरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे

मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूस
मिरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे

रह-ए-वफ़ा में इक ऐसा मक़ाम भी आया
कि हम ख़ुद अपनी तरफ़ से भी बद-गुमाँ गुज़रे

ख़ुलूस जिस में हो शामिल वो दौर-ए-इश्क़-ओ-हवस
न राएगाँ कभी गुज़रा न राएगाँ गुज़रे

उसी को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी
वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे

बहुत हसीन मनाज़िर भी हुस्न-ए-फ़ितरत के
न जाने आज तबीअत पे क्यूँ गिराँ गुज़रे

वो जिन के साए से भी बिजलियाँ लरज़ती थीं
मिरी नज़र से कुछ ऐसे भी आशियाँ गुज़रे

मिरा तो फ़र्ज़ चमन-बंदी-ए-जहाँ है फ़क़त
मिरी बला से बहार आए या ख़िज़ाँ गुज़रे

कहाँ का हुस्न कि ख़ुद इश्क़ को ख़बर न हुई
रह-ए-तलब में कुछ ऐसे भी इम्तिहाँ गुज़रे

भरी बहार में ताराजी-ए-चमन मत पूछ
ख़ुदा करे न फिर आँखों से वो समाँ गुज़रे

कोई न देख सका जिन को वो दिलों के सिवा
मुआमलात कुछ ऐसे भी दरमियाँ गुज़रे

कभी कभी तो इसी एक मुश्त-ए-ख़ाक के गिर्द
तवाफ़ करते हुए हफ़्त आसमाँ गुज़रे

बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर
वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे

अभी से तुझ को बहुत नागवार हैं हमदम
वो हादसात जो अब तक रवाँ-दवाँ गुज़रे

जिन्हें कि दीदा-ए-शाइर ही देख सकता है
वो इंक़िलाब तिरे सामने कहाँ गुज़रे

बहुत अज़ीज़ है मुझ को उन्हें क्या याद 'जिगर'
वो हादसात-ए-मोहब्बत जो ना-गहाँ गुज़रे
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Jigar Moradabadi
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी

हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

कहूँ ये कैसे इधर देख या न देख उधर
कि दर्द दर्द है फिर भी नज़र नज़र फिर भी

ख़ुशा इशारा-ए-पैहम ज़हे सुकूत-ए-नज़र
दराज़ हो के फ़साना है मुख़्तसर फिर भी

झपक रही हैं ज़मान ओ मकाँ की भी आँखें
मगर है क़ाफ़िला आमादा-ए-सफ़र फिर भी

शब-ए-फ़िराक़ से आगे है आज मेरी नज़र
कि कट ही जाएगी ये शाम-ए-बे-सहर फिर भी

कहीं यही तो नहीं काशिफ़-ए-हयात-ओ-ममात
ये हुस्न ओ इश्क़ ब-ज़ाहिर हैं बे-ख़बर फिर भी

पलट रहे हैं ग़रीब-उल-वतन पलटना था
वो कूचा रू-कश-ए-जन्नत हो घर है घर फिर भी

लुटा हुआ चमन-ए-इश्क़ है निगाहों को
दिखा गया वही क्या क्या गुल ओ समर फिर भी

ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
यही कि तेरी नज़र है तिरी नज़र फिर भी

हो बे-नियाज़-ए-असर भी कभी तिरी मिट्टी
वो कीमिया ही सही रह गई कसर फिर भी

लिपट गया तिरा दीवाना गरचे मंज़िल से
उड़ी उड़ी सी है ये ख़ाक-ए-रहगुज़र फिर भी

तिरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
उतर गया रग-ए-जाँ में ये नेश्तर फिर भी

ग़म-ए-फ़िराक़ के कुश्तों का हश्र क्या होगा
ये शाम-ए-हिज्र तो हो जाएगी सहर फिर भी

फ़ना भी हो के गिराँ-बारी-ए-हयात न पूछ
उठाए उठ नहीं सकता ये दर्द-ए-सर फिर भी

सितम के रंग हैं हर इल्तिफ़ात-ए-पिन्हाँ में
करम-नुमा हैं तिरे जौर सर-ब-सर फिर भी

ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा
तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी

अगरचे बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ को ज़माना हुआ
'फ़िराक़' करती रही काम वो नज़र फिर भी
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Firaq Gorakhpuri
इश्क़ मुझसे यूँ जताया करता था
शेर मेरे ही सुनाया करता था

और कुछ ना था जहाँ उसके सिवा
जिन दिनों मेरा कहाया करता था

टूटकर रोए मिला जब यार जो
बात बचपन की बताया करता था

सोचता था एक हम हो या न हो
वो लकीरों को मिलाया करता था

नाम लेता था बिछड़ जाए अगर
वो मुझे बस आज़माया करता था

रूठ जाऊँ झूठ का ही मैं कभी
तो हज़ारों कसमे खाया करता था

मान जाती मुस्कुराहट से ही मैं
वो सियाही ख़त में ज़ाया करता था

साथ उसके घूम आती थी जन्नते
वो हसीं सपने दिखाया करता था

गर्म कैसे सर्द दिल उसने किया
है सुना वो ख़त जलाया करता था

वो बदल देता नियत को मेरी तब
देखकर जब मुस्कुराया करता था

चीज़ ये तो तोड़ने को है बनी
कौन वादों को निभाया करता था

'नूर' तेरी मौत उसको याद ना
क़ब्र पे जो रोज़ आया करता था
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Parul Singh "Noor"
ख़ुद फ़लक से हो उतारा नैन तेरे
जो ख़ुदा ने हो सँवारा नैन तेरे

वादियाँ कितनी हसीं के जन्नती दिख
हम-नशीं ऐसा नज़ारा नैन तेरे

ख़्वाइशें होती मुकम्मल, तो समझ लो
आसमाँ का गिर सितारा, नैन तेरे

मुफ़्लिसी छाई, पता दो तुम ख़ुदा का
जो नहीं मिल, फ़िर सहारा नैन तेरे

प्यास है कबसे लगी मुझको, मिटा दे
इक समंदर का किनारा, नैन तेरे

चैन मिलता है कहाँ, कोई बताए
पास है जिसने पुकारा, नैन तेरे

के ख़बर हमको हमारी भी नहीं है
हाल पूछे जो हमारा, नैन तेरे

मय-कशी से अब मिरी हालत बुरी है
दे बुलाने का इशारा नैन तेरे

लुट चुके है हम, बचा कुछ भी नहीं है
कर दिया किसने ख़सारा? नैन तेरे

राइगाँ सब कुछ यहाँ, हर चीज़ छोड़ा
बस नहीं था जो नकारा, नैन तेरे

ज़िंदगी का राज़ बस इतना कहेंगे
यार जीने का गुज़ारा नैन तेरे
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Zain Aalamgir

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