दुरुस्त क़ौम के हालात क्यों नहीं करता
यतीम बच्चों की ख़िदमात क्यों नहीं करता
है हक़ परस्त तो हक़ बात क्यों नहीं करता
जहाँ से दूर फ़सादात क्यों नहीं करता
करीम है तो करामात क्यों नहीं करता
दुरुस्त दश्त में बरसात क्यों नहीं करता
सबील-ए-इश्क़ हर इक रात क्यों नहीं करता
वो मेरी ज़ात में ज़म ज़ात क्यों नहीं करता
परेशाँ हाल मुसल्ले पे बैठ कर रब से
ख़ुलूस-ए-दिल से मुनाजात क्यों नहीं करता
फ़िराक़-ए-यार में घुट घुट के जीना होता है
दिलों से दूर ये ख़दशात क्यों नहीं करता
जहाँ की रस्म-ओ-रिवाजो को दीन मत समझो
ये नस्ल-ए-नौ को हिदायात क्यों नहीं करता
वो आने वाला नहीं आएगा तमाम हयात
सफ़र की अपने शुरूआत क्यों नहीं करता
अमीर-ए-शहर अमीर-ए-जमाल मुझको बता
कि अपने हुस्न की ख़ैरात क्यों नहीं करता
ज़मीन-ए-दिल पे गिरे जा रहे हैं हिज्र के गुल
लहू की आँखों से बरसात क्यों नहीं करता
शजर हबीब मिरे जाँ निसार ऐ हमदम
ख़फ़ा नहीं है तो फिर बात क्यों नहीं करता
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