कभी मैं नाज़नीं को चाँद कहता हूँ
कभी ज़ोहरा-जबीं को चाँद कहता हूँ
तेरा चेहरा छुपाया अब्र ने जबसे
मैं हर पर्दा-नशीं को चाँद कहता हूँ
हज़ारों ख़ूब-रू हैं इस ज़माने में
मगर मैं बस तुम्हीं को चाँद कहता हूँ
कोई बस चाँद को ही चाँद कहता है
मैं लम्स-ए-मख़मलीं को चाँद कहता हूँ
इबादत की तरह जो इश्क़ करते हैं
मैं उन गोशा-नशीं को चाँद कहता हूँ
ज़माने को यही मुझसे शिकायत है
कि मैं हर जाँ-नशीं को चाँद कहता हूँ
मैं शाइर हूँ मेरा अंदाज़ अपना है
मैं अपनी सर-ज़मीं को चाँद कहता हूँ
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